काँग्रेस का मुख्य अधिवेशन क्रम से|| SSC-GD important question for sarkari jobs...|| काँग्रेस का मुख्य अधिवेशन क्रम से


 ◾काँग्रेस का मुख्य अधिवेशन क्रम से






काँग्रेस का मुख्य अधिवेशन क्रम से


𝐓𝐫𝐢𝐜𝐤 ➺ बक मइ बकना इलाम 


ब ☞ बम्बई (𝟏𝟖𝟖𝟓)


क ☞ कलकता (𝟏𝟖𝟖𝟔)


म ☞ मद्रास (𝟏𝟖𝟖𝟕)


इ ☞ इलाहाबाद (𝟏𝟖𝟖𝟖)


ब ☞ बम्बई (𝟏𝟖𝟖𝟗)


क ☞ कलकता (𝟏𝟖𝟗𝟎)


ना ☞ नागपुर (𝟏𝟖𝟗𝟏)


इ ☞ इलाहाबाद (𝟏𝟖𝟗𝟐)


ला ☞ लाहौर (𝟏𝟖𝟗𝟑)


म ☞ मद्रास (𝟏𝟖𝟗𝟒)


एक No पक्का हो गया याद कीजिए अच्छे से 🥳


कांग्रेस का पहला अधिवेशन: बम्बई (1885)

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना 28 दिसंबर, 1885 को बम्बई (वर्तमान मुंबई) में हुई थी। यह भारत के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ था, क्योंकि इसने भारतीयों को ब्रिटिश राज के खिलाफ एकजुट होने का एक मंच प्रदान किया।

क्यों हुई थी कांग्रेस की स्थापना?

  • ब्रिटिश शासन के खिलाफ असंतोष: ब्रिटिश शासन के दौरान भारतीयों को कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ रहा था, जैसे कि आर्थिक शोषण, सामाजिक असमानता और राजनीतिक दमन।
  • भारतीयों को एक मंच देने की आवश्यकता: भारतीयों को अपनी समस्याओं को सामूहिक रूप से उठाने और ब्रिटिश सरकार के सामने अपनी मांगें रखने के लिए एक मंच की आवश्यकता महसूस हो रही थी।
  • पश्चिमी विचारों का प्रभाव: पश्चिमी देशों में उठ रहे राष्ट्रवाद के विचारों का भारत में भी प्रभाव पड़ रहा था।

कांग्रेस के पहले अधिवेशन का महत्व

  • भारतीय राष्ट्रवाद का जन्म: इस अधिवेशन ने भारतीय राष्ट्रवाद को एक संगठित रूप दिया।
  • ब्रिटिश शासन के खिलाफ आवाज: कांग्रेस ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ आवाज उठानी शुरू की और भारतीयों के अधिकारों के लिए लड़ाई लड़ी।
  • समाज सुधार: कांग्रेस ने सामाजिक सुधारों के लिए भी काम किया।

अधिवेशन से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण तथ्य

  • अध्यक्ष: वोमेश चंद्र बनर्जी
  • सामान्य सचिव: ए. ओ. ह्यूम
  • स्थान: गोखले शास्त्री हॉल, बम्बई
  • सदस्य: 72

कांग्रेस के उद्देश्य

  • भारतीयों के राजनीतिक अधिकार: भारतीयों को राजनीतिक अधिकार दिलाना।
  • आर्थिक विकास: देश का आर्थिक विकास करना।
  • सामाजिक सुधार: सामाजिक बुराइयों को दूर करना।
  • राष्ट्रीय एकता: देश में राष्ट्रीय एकता लाना।

निष्कर्ष

कांग्रेस के पहले अधिवेशन ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम की नींव रखी। इस अधिवेशन के बाद कांग्रेस भारत के स्वतंत्रता संग्राम में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती रही।

क्या आप कांग्रेस के किसी विशेष नेता या घटना के बारे में अधिक जानना चाहते हैं?

अन्य संभावित प्रश्न:

  • कांग्रेस के शुरुआती वर्षों में कौन-कौन से प्रमुख नेता थे?
  • कांग्रेस ने स्वतंत्रता संग्राम के दौरान कौन-कौन से महत्वपूर्ण आंदोलन चलाए?
  • कांग्रेस के विभाजन के क्या कारण थे?

यदि आप कोई विशिष्ट प्रश्न पूछते हैं, तो मैं आपको अधिक विस्तृत जानकारी प्रदान कर सकता हूँ।


 कांग्रेस का दूसरा अधिवेशन 1886 

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का दूसरा अधिवेशन 1886 में कलकत्ता (अब कोलकाता) में आयोजित किया गया था। यह अधिवेशन 27-29 दिसंबर 1886 के बीच हुआ था और इसकी अध्यक्षता दादाभाई नैरोजी ने की थी।

कलकत्ता अधिवेशन (1886) की प्रमुख बातें:

  1. अध्यक्ष: दादाभाई नैरोजी
  2. स्थान: कलकत्ता
  3. सदस्य संख्या: लगभग 436 प्रतिनिधियों ने भाग लिया।
  4. उद्देश्य: कांग्रेस के संगठन को मजबूत करना और भारतीयों की मांगों को आगे बढ़ाना।
  5. विशेष बात: इस अधिवेशन में सुरेंद्रनाथ बनर्जी के नेतृत्व वाली भारतीय राष्ट्रीय सम्मेलन (National Conference) का कांग्रेस में विलय हुआ, जिससे कांग्रेस एक मजबूत संगठन के रूप में उभरी।
  6. मुख्य मुद्दे: ब्रिटिश सरकार की नीतियों की समीक्षा, भारतीय प्रशासन में सुधार, नागरिक अधिकारों की मांग आदि।

महत्व:

  • इस अधिवेशन के बाद कांग्रेस का जनाधार बढ़ा और यह एक अखिल भारतीय संगठन बन गया।
  • दादाभाई नैरोजी ने ब्रिटिश शासन के आर्थिक शोषण पर जोर दिया और स्वशासन (Self-Government) की मांग को बढ़ावा दिया।

कलकत्ता अधिवेशन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के प्रारंभिक दौर में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर था, जिसने कांग्रेस को एक प्रभावी राजनीतिक मंच के रूप में स्थापित किया।


भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का कलकत्ता अधिवेशन (1886)

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (INC) का दूसरा वार्षिक अधिवेशन 27 से 29 दिसंबर 1886 के बीच कलकत्ता (अब कोलकाता) में आयोजित किया गया था। यह अधिवेशन कांग्रेस की शुरुआती बैठकों में से एक था, जिसने इसे एक अखिल भारतीय संगठन के रूप में मजबूती प्रदान की।


🔹 प्रमुख विवरण:

विवरण जानकारी
अधिवेशन वर्ष 1886
स्थान कलकत्ता (अब कोलकाता)
अध्यक्ष दादाभाई नैरोजी
प्रतिनिधियों की संख्या लगभग 436
महत्वपूर्ण घटना भारतीय राष्ट्रीय सम्मेलन (National Conference) का विलय
मुख्य मुद्दे प्रशासनिक सुधार, भारतीयों के लिए उच्च सरकारी पद, स्वशासन की मांग आदि

🔹 मुख्य विशेषताएँ:

1️⃣ दादाभाई नैरोजी की अध्यक्षता

  • यह अधिवेशन दादाभाई नैरोजी की अध्यक्षता में हुआ, जिन्हें "ग्रैंड ओल्ड मैन ऑफ इंडिया" कहा जाता है।
  • उन्होंने ब्रिटिश शासन के अधीन भारत की आर्थिक स्थिति पर प्रकाश डाला और "ड्रेन थ्योरी" (Drain of Wealth Theory) की चर्चा की, जिसमें उन्होंने बताया कि ब्रिटिश सरकार किस प्रकार भारत की संपत्ति को ब्रिटेन भेज रही थी।

2️⃣ भारतीय राष्ट्रीय सम्मेलन (National Conference) का विलय

  • इस अधिवेशन में सुरेंद्रनाथ बनर्जी के नेतृत्व वाला भारतीय राष्ट्रीय सम्मेलन (National Conference) कांग्रेस में विलय कर दिया गया।
  • इस विलय से कांग्रेस को एक अखिल भारतीय संगठन बनने में सहायता मिली और इसकी लोकप्रियता बढ़ी।

3️⃣ कांग्रेस का विस्तार और लोकप्रियता

  • 1885 के पहले अधिवेशन (बंबई) की तुलना में 1886 के अधिवेशन में अधिक संख्या में प्रतिनिधियों ने भाग लिया।
  • कांग्रेस ने अपने दरवाजे सभी भारतीय समुदायों के लिए खोल दिए, जिससे यह एक राष्ट्रव्यापी संगठन बन सका।

4️⃣ ब्रिटिश सरकार से प्रमुख मांगें

  • भारतीयों को उच्च प्रशासनिक और न्यायिक सेवाओं में अधिक प्रतिनिधित्व दिया जाए।
  • भारतीयों के साथ नस्लीय भेदभाव समाप्त किया जाए।
  • नागरिक अधिकारों और प्रेस की स्वतंत्रता को बढ़ावा दिया जाए।
  • सरकार के वित्तीय व्यय में पारदर्शिता लाई जाए और भारत की धन-संपत्ति के ब्रिटेन में स्थानांतरण (Drain of Wealth) को रोका जाए।

🔹 कलकत्ता अधिवेशन (1886) का महत्व

✅ कांग्रेस को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिली और संगठन मजबूत हुआ।
✅ भारतीय राष्ट्रीय सम्मेलन के विलय से यह पहली बार एक व्यापक अखिल भारतीय राजनीतिक संगठन बना।
✅ दादाभाई नैरोजी ने पहली बार ब्रिटिश शोषण की आर्थिक नीतियों पर खुलकर चर्चा की, जिसने बाद में स्वदेशी आंदोलन और स्वतंत्रता संग्राम की नींव रखी।
✅ कांग्रेस का स्वरूप केवल शिक्षित और उच्च वर्ग तक सीमित न रहकर आम जनता तक फैलने लगा।


🔹 निष्कर्ष

1886 का कलकत्ता अधिवेशन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम था। इस अधिवेशन में उठाए गए मुद्दों और विचारों ने भविष्य में भारतीय राजनीति और स्वतंत्रता संग्राम को एक नई दिशा दी। कांग्रेस का यह प्रारंभिक चरण बाद में  स्वराज,स्वदेशी आंदोलन की मांग में परिवर्तित हो गया।

मद्रास (𝟏𝟖𝟖𝟕)....

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का तीसरा अधिवेशन 1887 में मद्रास (अब चेन्नई) में आयोजित किया गया था। यह अधिवेशन 27 से 30 दिसंबर 1887 के बीच हुआ था। इस अधिवेशन की अध्यक्षता बदरुद्दीन तैयबजी ने की थी, जो कि पहले मुस्लिम अध्यक्ष बने।

मुख्य बिंदु:

  1. अध्यक्ष: बदरुद्दीन तैयबजी
  2. स्थान: मद्रास (चेन्नई)
  3. महत्वपूर्ण विषय: कांग्रेस का विस्तार और भारतीयों के लिए न्याय की मांग
  4. वर्ष: 1887

महत्वपूर्ण घटनाएँ:

  • इस अधिवेशन में कांग्रेस ने अपनी सदस्य संख्या बढ़ाने और संगठन को और मजबूत करने पर जोर दिया।
  • ब्रिटिश सरकार द्वारा भारतीयों के साथ किए जा रहे भेदभाव के खिलाफ आवाज उठाई गई।
  • कांग्रेस ने मांग की कि प्रशासन में भारतीयों की भागीदारी को बढ़ाया जाए।
  • फिरोजशाह मेहता और सुरेंद्रनाथ बनर्जीदादाभाई नौरोजीजैसे नेता इसमें सक्रिय रूप से शामिल हुए।

इस अधिवेशन ने कांग्रेस के संगठन को मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और आगे चलकर भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की नींव मजबूत हुई।



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